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कमाल / योगेंद्रकुमार लल्ला

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<poem>दुनिया में कुछ करूँ कमाल,
पर कैसे, यह बड़ा सवाल!

एक उगाऊँ ऐसा पेड़
जिसमें पत्ते हों दो-चार,
लेकिन उस पर चढ़कर बच्चे
देख सकें सारा संसार।
बड़े लोग कोशिश कर देखें
चढ़ने की, पर गले न दाल।

एक बनाऊँ ऐसी रेल
जिसमें पहिए हों दो-चार,
बिन पटरी, बिन सिग्नल दौड़े
फिर भी बड़ी तेज रफ्तार।
बटन दबाते ही जा पहुँचे
कलकत्ता से नैनीताल।

एक बनाऊँ ऐसी झील
जिसमें नाव चलें दो-चार,
पानी घुअने-घुटने हो पर
बच्चे तैरें पाँच हजार।
खिलें कमल की तरह टाफियाँ
ना खाएँ तो रहे मलाल।

-साभार: नंदन, जुलाई, 2005, 20
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