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बुआ लोमड़ी / रमेश आज़ाद

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<poem>रहते इक बाड़े के अंदर,
शेर - लोमड़ी - भालू - बंदर।
भालू से बंदर लड़ बैठा,
हाथापाई तक कर बैठा।
खाकर थप्पड़ रोया बंदर,
खिसयाया भालू के ऊपर।
देख रही थी खड़ी खड़ी,
बुआ लोमड़ी बोल पड़ी।
नहीं-नहीं, मत करो लड़ाई,
वरनासमझो आफत आई।
रहना है जब सबको साथ,
फिर क्यों थप्पड़, घूसे-लात?
</poem>
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