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|रचनाकार=रवींद्रनाथ त्यागी
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<poem>जंगल के सब जानवरों ने
एक लगाया मेला,
पोखर के तट वाला तम्बू
बड़ी दूर तक फैला।
हाथी लगा समोसे तलने
भालू नरम कचौड़ी
बकरी ने दूकान लगाई
बेचें पान गिलौरी।

बंदर लगा तमाशा करने
बंदरी को संग लेकर,
घोड़ा पैसे कमा रहा है
सरपट दौड़-दौड़ कर।

तोते ने अपने डेरे में
एक होटल-सा खोला,
डोसा, साँभर, वड़ा बेचकर
खुश है मिट्ठू भोला।

गदहा पापड़ लगा बेलने
चूहा नाच दिखाता,
बिल्ली रानी घूम रही है
लिये हाथ में छाता।

चीते ने एक सर्कस खोला
बीवी-बच्चे लेकर,
देख रहा है सर्कस गीदड़
गैंडे ऊपर चढ़कर।

डुग-डुग डुगडुग पिटी डुगडुगी
होती रेलम रेला,
जंगल के सब जानवरों ने
एक लगाया मेला।
</poem>
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