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<poem>बैठा तार सितार पर
मच्छर गाता गीत,
टाँग तार से लड़ गई
साथ बजा संगीत।

कान उठे ऊपर तने
तुरंत भर गया जोश,
उठी ऊँट की पीठ तब
जब बैठा खरगोश।

टेलीविजन पर दिखलाए
गुच्छे अंगूरों के,
देख लोमड़ी खाने लपकी
भालू उसको रोके-

‘यह सच्चे अंगूर नहीं हैं
है झूठा आकर्षण,
भेंट अरे दूरदर्शन की है
करो दूर से दर्शन।’

-साभार: पराग, मार्च, 1980, 29
</poem>
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