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{{KKRachna
|रचनाकार=चंद्रसेन विराट
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatBaalKavita}}
<poem>बरसो राम, धड़ाके से,
बुढ़िया मरे न फाके से!
सनन-सनन सन हवा चले,
सबके मुख पर धूल मले,
घर के दरवाजे खिड़की,
खड़कें खूब खड़ाके से!
बरसो राम, धड़ाके से,
बुढ़िया मरे न फाके से!
उमड़-उमड़कर गगन घिरो,
और मूसलाधार गिरो,
चमकाओ बिजली चम-चम,
गरजो खूब कड़ाके से!
बरसो राम, धड़ाके से,
बुढ़िया मरे न फाके से!
</poem>
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|रचनाकार=चंद्रसेन विराट
|अनुवादक=
|संग्रह=
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<poem>बरसो राम, धड़ाके से,
बुढ़िया मरे न फाके से!
सनन-सनन सन हवा चले,
सबके मुख पर धूल मले,
घर के दरवाजे खिड़की,
खड़कें खूब खड़ाके से!
बरसो राम, धड़ाके से,
बुढ़िया मरे न फाके से!
उमड़-उमड़कर गगन घिरो,
और मूसलाधार गिरो,
चमकाओ बिजली चम-चम,
गरजो खूब कड़ाके से!
बरसो राम, धड़ाके से,
बुढ़िया मरे न फाके से!
</poem>