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|रचनाकार=सूर्यभानु गुप्त
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<poem>बड़े निराले चंदू मामा,
सोने में हैं पूरे गामा।

बातें करते-करते वो तो
खर्राटे भरने लगते हैं,
खर्राटे भी ऐसे धाँसू
बच्चे सुन डरने लगते हैं।

ऐसा लगता देख रहे हों-
कुंभकर्ण का कोई ड्रामा।

तोंद फूलती और पिचकती
बार-बार तेजी से ऐसे,
हारमोनियम पर बैठा हो
कोई नौसिखिया-सा जैसे-

खर्राटों की लय, धुन बाँधे,
सा रे गा मा, सा रे गा मा।

बिन देखे विश्वास न आए
वो कमाल मामा करते हैं,
अपने ही खर्राटे सुनकर
कई बार खुद जग पड़ते हैं-

और पूछते, नींद खुल गई-
कौन कर रहा था हंगामा?
</poem>
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