और मेरे हृदय की धक्-धक्<br>
पूछती है--वह कौन<br>
सुनाई जो देता, पर नहीं देता दिखाई,..!<br>
इतने में अकस्मात गिरते हैं भीतर से<br>
फूले हुए पलस्तर,<br>
भव्य ललाट है,<br>
दृढ़ हनु<br>
कोई अनजानी अन-पहचानी आकृती।आकृति।<br>
कौन वह दिखाई जो देता, पर<br>
नहीं जाना जाता है!!<br>कौन मनु?<br><br>
बाहर शहर के, पहाड़ी के उस पार, तालाब...<br>
अँधेरा सब ओर,<br>
निस्तब्ध जल,<br>
पर, भीतर से उभरता उभरती है सहसा<br>
सलिल के तम-श्याम शीशे में कोई श्वेत आकृति<br>
कुहरीला कोई बड़ा चेहरा फैल जाता है<br>
नहीं वह समझ में आता।<br><br>
अरे ! अरे !!<br>
तालाब के आस-पास अँधेरे में वन-वृक्ष<br>
चमक-चमक उठते हैं हरे-हरे अचानक<br>
वृक्षों के अँधेरे में छिपी हुई किसी एक <br>
तिलस्मी खोह का शिला-द्वार<br>
खुलता है धड़् धड़ से<br>
........................<br>
घुसती है लाल-लाल मशाल अजीब-सी<br>
मौत की सज़ा दी !<br><br>
किसी काले डैश की घनी काली पट्टी होही<br>
आँखों में बँध गयी,<br>
किसी खड़ी पाई की सूली पर मैं टाँग दिया गया,<br>
किसी शून्य बिन्दु के अँधियारे खड्डे में<br>
::गिरा दिया गया मैं<br>
::अचेतन स्थिति में !