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ओढ़ रजाई / देवेंद्र कुमार 'देव'

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<poem>चिक्कड़-बम भई चिक्कड़-बम,
मौसम ठंडा, चाय गरम!
चिक्कड़-बम भई, चिक्कड़-बम!

ठिठुरन झेली चंदा ने
ओढ़ रजाई सोए हम,
चिक्कड़-बम भई चिक्कड़ बम!

सूरज काँपे थर-थर-थर,
हवा गा रही रम पम पम,
चिक्कड़-बम भई चिक्कड़ बम!

कौन भला निकले बाहर
कोहरा ठोंक रहा है खम
चिक्कड़-बम भई चिक्कड़ बम!

-साभार: नंदन जनवरी 1997, 18
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