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{{KKRachna
|रचनाकार=रामनरेश पाठक
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>ये अलिखित ही रहें
तनहाइयाँ, फिसलनें
ना उम्मीदियाँ, उलझनें,
तनाव, सिलवटें,
सुझाव, करवटें,
ये अलिखित ही रहें.
कोरे कागज़ का दर्द
यों ही बहुत होता है,
स्याही पी पी कर वह
और बड़ा होता है !!!
</poem>
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तनहाइयाँ, फिसलनें
ना उम्मीदियाँ, उलझनें,
तनाव, सिलवटें,
सुझाव, करवटें,
ये अलिखित ही रहें.
कोरे कागज़ का दर्द
यों ही बहुत होता है,
स्याही पी पी कर वह
और बड़ा होता है !!!
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