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{{KKRachna
|रचनाकार=रामनरेश पाठक
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>मैं कहीं का नहीं हो सका
न तन से, न मन से, न धन से,
न कर्म से, न वाक् से
किसी अक्षांश देशांतर के
समवेत बिंदु पर टिक नहीं पाया
किसी समतल या उदग्रता की
सिम्फनी में जुड़ नहीं सका
किन्तु मुझे प्रायश्चित करना ही होगा
यायावरी का,
कहीं न टिकने और जुड़ने का !
</poem>
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<poem>मैं कहीं का नहीं हो सका
न तन से, न मन से, न धन से,
न कर्म से, न वाक् से
किसी अक्षांश देशांतर के
समवेत बिंदु पर टिक नहीं पाया
किसी समतल या उदग्रता की
सिम्फनी में जुड़ नहीं सका
किन्तु मुझे प्रायश्चित करना ही होगा
यायावरी का,
कहीं न टिकने और जुड़ने का !
</poem>