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|रचनाकार=दिनेश कुमार स्वामी 'शबाब मेरठी']]
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<poem>
वो याद आता है जब याद आना होता है
कि बारिशों का तो यूँ ही बहाना होता है
अब उसका ज़िक्र भी करने की है ज़रूरत क्या
किसी का काम ही दिलको दुखाना होता है
अँधेरा हो गया जाओ शराब ले आओ
चराग़ शामको घर में जलाना होता है
पड़ौसियों की ख़बर है न अब कोई मुझको
न दोस्तों ही से मिलना मिलना होता है
</poem>
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वो याद आता है जब याद आना होता है
कि बारिशों का तो यूँ ही बहाना होता है
अब उसका ज़िक्र भी करने की है ज़रूरत क्या
किसी का काम ही दिलको दुखाना होता है
अँधेरा हो गया जाओ शराब ले आओ
चराग़ शामको घर में जलाना होता है
पड़ौसियों की ख़बर है न अब कोई मुझको
न दोस्तों ही से मिलना मिलना होता है
</poem>