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Kavita Kosh से
बदली तैर रही है नभ में झलक रहा है चांद
चित्रा! तेरी याद में मन है मेरा उदास है
देखूंगा, देखूंगा, मैं तुझे फिर एक बार
मरते हुए कवि को, चित्रा! अब भी है यह आस है