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वसन्त की रात-2 / अनिल जनविजय

1 byte added, 08:48, 12 सितम्बर 2008
बदली तैर रही है नभ में झलक रहा है चांद
चित्रा! तेरी याद में मन है मेरा उदास है
देखूंगा, देखूंगा, मैं तुझे फिर एक बार
मरते हुए कवि को, चित्रा! अब भी है यह आस है
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