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{{KKRachna
|रचनाकार= मधु आचार्य 'आशावादी'
|संग्रह=अमर उडीक / मधु आचार्य 'आशावादी'
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[[Category:मूल राजस्थानी भाषा]]
{{KKCatKavita‎}}<poem>
ना खावै
ना पीवै
तिरकाळ तावड़ै मांय झुळसै
फेरूं ई नीं कळपै
कोई नीं जाणै उणरी मनगत
किणनै बतावै
किण सूं सुणै
मांय रो मांय बळै
पण करै कांई
रूंख है
लोगां नै खाली देवै
हरियाळी रो लखाव
खुद रै दुख रो
दूजां नै नीं हुवण देवै
अैसास
रूंखड़ा, थनै लुळ-लुळ सलाम।
</poem>
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