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सीर रो घर / वासु आचार्य

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{{KKRachna
|रचनाकार=वासु आचार्य
|संग्रह=}}{{KKCatKavita‎}}KKPustak{{KKCatRajasthaniRachna}}|चित्र=<Poem>लारलै-केई बरसां सूंम्हैं म्हारै पुरखां रै घर नैंताकतो रैवूं- घणी बार म्हनैं लखावैघर भी पाछो ताकै हैनिजर पसार दिन रै उजाळै मेंघर कीं नीं बोलैमाइतां री-माण मरजाद |नाम=सीर रोम्हासूं बत्तो औ सैनाणभूत ज्यूं खड़्योघर सूं-‘ढूंढो’ बणतो|रचनाकार=[[वासु आचार्य]]रात रै अंधारै में |प्रकाशक=डुसका भरतो-|वर्ष=आपरो मुंडो खोलै|भाषा=राजस्थानी |विषय=कविता गूंजण लागै|शैली= म्हारै कानां में|पृष्ठ=दरद भरिया दरदीला बोल|ISBN=तूं- क्यूं-फाड़तो रैवै आंख्यांम्हारै कानीक्यूं कुचरै है- म्हारा घावअर क्यूं लेवै है-म्हारो पाणी घर जणै थोड़ो थमैअर फेर बोलै- और भी तो हा-छोड़ग्यानीं ठाह क्यूं गयानीं साळ-संभाळनीं बोल-बतळावणम्हैं झर रैयो हूं-गळ रैयो हूं- मांय |विविध=“सीर रो मांयघर” पर साहित्य अकादेमी पुरस्कार}}कांई बखत हो-कै आसै-पासै रा लोगनिसरता हा- म्हनैंमाथो झुकाय कांई बखत है-निसर जावै नसड़ी झुकायमाइतां नै सायतठाह नीं होकै म्हैं बां रै पाछैहुय जाऊंला- *[[सीर रो घरअर होऊंला जीर-जीरम्हारै ही लाडला रीबेरूखी सूं घर रो जाणैगळो रूंधग्योचुपचाप बैवण लागगीआंसुवां री धार म्हैं नीं दे सक्योपाछो कोई पडूत्तर म्हारै रूं-रूं में फैलगीचीस्याड़ांबिलखतै माइतां री म्हनै लखायो-म्हारै पुरखां रो घरघर नीं हैचीखता-चिंघाड़ता माइत हैजिणां नैं भारिया बुढ़ापै मेंसुगार फैंक दिया हैउणां रा ही लाडेसर म्हैं- फेर ताकूं हूंचुपचाप-पुरखां रै चिणायै म्हारै घर नैंसीर रै घर नैं।<(कविता) /poem>वासु आचार्य]]
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