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मेरी मैं जानूं / पारस अरोड़ा

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अचानक
थोथी हो गई
पांव तले की जमीन
पांव घुटनों तक
धंस गये जमीन में
आस-पास खड़े
लोगों को पुकारा,
आश्‍चर्य कि वे सारे
माटी की पुतलियों में तब्दील हो
माटी में धंस गये
शायद
किसी का अभिशाप फल गया उन्हें -
लाखों के लोग
कौड़ियों के हो गये।

मैं धरती के कांधे पर हाथ रख
आ गया बाहर
अब वे
गले तक धंसे हुए लोग
बुला रहे हैं मुझे।

मेरे दो हाथों में से
एक मेरा है
दूसरा सौंप रहा हूं उन्हें
यह जानते हुए
कि बाहर आकर वे
यही हाथ
काटने लगेंगे
पर उनकी वे जानें
मेरी मैं जानूं !

'''अनुवादक - नंद भारद्वाज'''
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