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हळकाई / रचना शेखावत

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<poem>
थां सूं अळगो करियो आपो,
फेरूं पाछी बावड़ी
तद दीन्यो मान।

थूं जद नावड़्यो नवी मंजलां
पाछो नीं बावड़्यो
थूं म्हारै बावडऩै री
इयां हळकाई कर दीनी।
</poem>
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