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आँसू पी लिए / राकेश खंडेलवाल
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13:23, 17 अप्रैल 2008
काँपती काँपती सी शिखा दीप की<br>
रात के देख तेवर झिझकती रही<br>
चाँदनी
चांदनी
थी विलग
चाँद
चांद
के द्वार से<br>
झुरमुटों में सितारों के छुपती रही<br>
और हम अँजुरि में भरे साँस का कर्ज़ गिन गिन के रखते हुए जी लिये<br>
Pratishtha
KKSahayogi,
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