भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आँसू पी लिए / राकेश खंडेलवाल

No change in size, 13:23, 17 अप्रैल 2008
काँपती काँपती सी शिखा दीप की<br>
रात के देख तेवर झिझकती रही<br>
चाँदनी चांदनी थी विलग चाँद चांद के द्वार से<br>
झुरमुटों में सितारों के छुपती रही<br>
और हम अँजुरि में भरे साँस का कर्ज़ गिन गिन के रखते हुए जी लिये<br>