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Kavita Kosh से
रोशनी दायरों में पिघलने लगी<br>
टिमटिमाते हुए कुमकुमों से झरे<br>
पारिजातों की कलियों ने आवाज़ दे<br>
भेद अपना बताया है कचनार को<br>
एक कंदील थी जो निशा के नयन में किरन बन गयी, फिर चमकने लगी<br>
