भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
गीले बादल, पीले रजकण,
 
सूखे पत्ते, रूखे तृण घन
 
लेकर चलता करता 'हरहर'--इसका गान समझ पाओगे?
 तुम तूफान समझ पाओगे ?
गंध-भरा यह मंद पवन था,
 
लहराता इससे मधुवन था,
 
सहसा इसका टूट गया जो स्वप्न महान, समझ पाओगे?
 तुम तूफान समझ पाओगे ? 
तोड़-मरोड़ विटप-लतिकाएँ,
 
नोच-खसोट कुसुम-कलिकाएँ,
 जाता है अज्ञात दिशा को ! हटो विहंगम, उड़ जाओगे ! तुम तूफान समझ पाओगे ?</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader, प्रबंधक
35,131
edits