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गीले बादल, पीले रजकण,
 
सूखे पत्ते, रूखे तृण घन
 
लेकर चलता करता 'हरहर'--इसका गान समझ पाओगे?
 तुम तूफान समझ पाओगे ?
गंध-भरा यह मंद पवन था,
 
लहराता इससे मधुवन था,
 
सहसा इसका टूट गया जो स्वप्न महान, समझ पाओगे?
 तुम तूफान समझ पाओगे ? 
तोड़-मरोड़ विटप-लतिकाएँ,
 
नोच-खसोट कुसुम-कलिकाएँ,
 जाता है अज्ञात दिशा को ! हटो विहंगम, उड़ जाओगे ! तुम तूफान समझ पाओगे ?</poem>
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