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{{KKRachna
|रचनाकार=प्रभुदयाल श्रीवास्तव
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<poem>पापा गरमा गरम जलेबी,
लेकर आये हैं |

मुनियाँ ने पहचानी उनके,
पैरों की आहट|
मम्मी के मुखड़े पर आ
मीठी मुस्काहट |
दादा तो दरवाजे से ही,
आ पछियाए हैं |

गंध मिली तो दादी जी का,
पत्ता मन डोला |
ताक रहीं थीं गरम जलेबी,
वाला वह झोला |
मुन्ना के हाथों संदेशे ,
दो भिजवाये हैं |

गरम जलेबी मम्मी ने जब,
सबको खिलवाई |
ऊपर चढ़ी सांस थी सबकी ,
तब नीचे आई |
चेहरों पर खुशियों के परचम ,
अब लहराए हैं | </poem>
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