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|रचनाकार=रेखा चमोली
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>बेटियॉ जो मानती सबका कहा
घर वालों की ऑखों से देखती सारे रंग
उनकी पसंद-नापसंद से तय करती
खिडकी का खुलना
छत में टहलना
भाई की लम्बी उम्र ,घर की खुशहाली के लिए रखती व्रत
अनदेखा करती
अपने हिस्से आए
थोडा कम मीठे, ज्यादा नमक को
होती घर भर की लाडली
नाते रिश्तेदार ,पडोसी तारीफंे करते नहीं थकते
सबकी हों ऐसी बेटियॉ
सबकी हों ऐसी बेटियॉ
धन्य-धन्य ऐसे मॉ बाप
धन्य-धन्य ऐसी बेटियॉ
कुल की लाज बेटियॉ
ऊॅचा माथा, ऊॅची नाक बेटियॉ
बेटियॉ जो अपने लिए खुद बनाना चाहती अपनी दुनियॉ
उसमें बसने वाले लोग ,अच्छा बुरा
अपनी पसंद नापसंद का करती इजहार
सवाल पूछती बार -बार
झिडकियॉ खाती हर बार
लाडली नहीं रह पाती
खटकती हैं घर भर की अॅाखों में
इन्हें देख खो जाती मॉ के चेहरे की मुसकान
पिता भरते लम्बी सॉसे
भाई-चाचा देखते संदेह से
फिर नहीं बन पाती वो
घर के किसी काम ,योजना ,त्योहार का जींवत हिस्सा
बाहरी लोगों के सामने
घर वाले भले ही बतियॉए इनसे
अक्सर खामोशी ही इनके हिस्से आती
इनकी शादी भी किसी निबटाऊ काम जैसी होती
मायके आने पर जहॉ
लाडली बिटिया रखवाती अपनी मनपसंद चीजें
इनके सामने रोया जाता दुखडा अभावों का
इनको न कोई गले लगाता
न ही रखता सिर पर हाथ
ये रूठ जाएं तो रूठी ही रह जाती है
धीरे -धीरे भुला दी जाती हैं।
</poem>
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<poem>बेटियॉ जो मानती सबका कहा
घर वालों की ऑखों से देखती सारे रंग
उनकी पसंद-नापसंद से तय करती
खिडकी का खुलना
छत में टहलना
भाई की लम्बी उम्र ,घर की खुशहाली के लिए रखती व्रत
अनदेखा करती
अपने हिस्से आए
थोडा कम मीठे, ज्यादा नमक को
होती घर भर की लाडली
नाते रिश्तेदार ,पडोसी तारीफंे करते नहीं थकते
सबकी हों ऐसी बेटियॉ
सबकी हों ऐसी बेटियॉ
धन्य-धन्य ऐसे मॉ बाप
धन्य-धन्य ऐसी बेटियॉ
कुल की लाज बेटियॉ
ऊॅचा माथा, ऊॅची नाक बेटियॉ
बेटियॉ जो अपने लिए खुद बनाना चाहती अपनी दुनियॉ
उसमें बसने वाले लोग ,अच्छा बुरा
अपनी पसंद नापसंद का करती इजहार
सवाल पूछती बार -बार
झिडकियॉ खाती हर बार
लाडली नहीं रह पाती
खटकती हैं घर भर की अॅाखों में
इन्हें देख खो जाती मॉ के चेहरे की मुसकान
पिता भरते लम्बी सॉसे
भाई-चाचा देखते संदेह से
फिर नहीं बन पाती वो
घर के किसी काम ,योजना ,त्योहार का जींवत हिस्सा
बाहरी लोगों के सामने
घर वाले भले ही बतियॉए इनसे
अक्सर खामोशी ही इनके हिस्से आती
इनकी शादी भी किसी निबटाऊ काम जैसी होती
मायके आने पर जहॉ
लाडली बिटिया रखवाती अपनी मनपसंद चीजें
इनके सामने रोया जाता दुखडा अभावों का
इनको न कोई गले लगाता
न ही रखता सिर पर हाथ
ये रूठ जाएं तो रूठी ही रह जाती है
धीरे -धीरे भुला दी जाती हैं।
</poem>