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Kavita Kosh से
अभी और संपादन बाकी था
थी अभी एक बूँद कुछ आगे बढ़ी<br>
सोचने फिर-फिर यही जी में लगी,<br>
आह ! क्यों घर छोड़कर मैं यों बढ़ी कढ़ी ?<br><br>
देव मेरे भाग्य में क्या है बढ़ाबदा,<br>
मैं बचूँगी या मिलूँगी धूल में ?<br>
या जलूँगी फिर अंगारे पर किसी,<br>
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