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{{KKRachna
|रचनाकार=कुमार रवींद्र
|अनुवादक=
|संग्रह=चेहरों के अन्तरीप / कुमार रवींद्र
}}
{{KKCatNavgeet}}
<poem>डूबते आकाश से रुककर
फिर नदी ने बात की
छाँव पेड़ों की
नहाते थम गयी
एक चिड़िया
हवा में उछली
अचानक जम गयी
याद आई थके जल को
धूप की-बरसात की
सीढ़ियों ने आँख मूँदी
रेत पर
चुप हुए सब -
ताल-जंगल-खेत-घर
तट अकेला हाथ बाँधे
सोचता है रात की
</poem>
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|अनुवादक=
|संग्रह=चेहरों के अन्तरीप / कुमार रवींद्र
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<poem>डूबते आकाश से रुककर
फिर नदी ने बात की
छाँव पेड़ों की
नहाते थम गयी
एक चिड़िया
हवा में उछली
अचानक जम गयी
याद आई थके जल को
धूप की-बरसात की
सीढ़ियों ने आँख मूँदी
रेत पर
चुप हुए सब -
ताल-जंगल-खेत-घर
तट अकेला हाथ बाँधे
सोचता है रात की
</poem>