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अफसोस ! / राग तेलंग

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<poem>हम जब दुनिया से जाते हैं
हमारे साथ
कोई न कोई अफसोस जरूर जाता है

यह एक अनिवार्य
मगर गैरजरूरी सामान है
जो हम जाने कबसे ढोते आ रहे हैं

हिसाब की किताब के
हम दीवानों को
समझाना भी तो मुश्किल

इतना कि
आखिरी वक्त
अगर कोई आकर हमें बताए कि
जाएं इस जहान से तो
अपने सारे पंख यहीं छोड़ जाएं
तो
इस समझाइश को मानने का सौदा भी
हम जरूर कर बैठें

अफसोस !
हम दुनिया से ऐसे जाते हैं ।
</poem>
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