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कारीगर-विहीन समाज / राग तेलंग

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<poem>यह दिन तो आना ही था
जब सामान तो है बाजार में
मगर कारीगर नहीं मौजूद

औजारों की बिक्री में इजाफा बंद है

कारीगर
लगातार मोबाइल पर व्यस्त हैं
उनके पास
चुनाव के कई मौके आ गए हैं
जहां ज्यादा दाम वहां काम

कई लोग कारीगर-विहीन हैं
फलतः सामान धरा का धरा है

हुनर और हुनरमंद
पैदा करने का काम
घरों में
कब का छूटा हुआ है

पढ़-लिखकर
खुद कुछ करने का जज्बा
दिखाया बहुत कम ने

औजारों की क़द्र करना ही
सीख लेते हम
तो नहीं देखना पड़ते ये दिन ।
</poem>
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