भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
Removed the lines that were by Mirza Ghalib..
ढूँढने उस को चला हूँ जिसे पा भी न सकूँ
 
मेहरबाँ होके बुला लो मुझे चाहो जिस वक़्त
मैं गया वक़्त नहीं हूँ के फिर आ भी न सकूँ
डाल कर ख़ाक मेरे ख़ून पे क़ातिल ने कहा
ज़ब्त<ref> सहनशीलता-Forbearance </ref> कमबख़्त ने और आ के गला घोंटा है
के उसे हाल सुनाऊँ तो सुना भी न सकूँ
 
ज़हर मिलता ही नहीं मुझको सितमगर वरना
क्या कसम है तेरे मिलने की के खा भी न सकूँ
उस के पहलू<ref> गोद-Lap</ref>में जो ले जा के सुला दूँ दिल को