भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
Removed the lines that were by Mirza Ghalib..
ढूँढने उस को चला हूँ जिसे पा भी न सकूँ
डाल कर ख़ाक मेरे ख़ून पे क़ातिल ने कहा
ज़ब्त<ref> सहनशीलता-Forbearance </ref> कमबख़्त ने और आ के गला घोंटा है
के उसे हाल सुनाऊँ तो सुना भी न सकूँ
उस के पहलू<ref> गोद-Lap</ref>में जो ले जा के सुला दूँ दिल को