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|रचनाकार=कमलेश द्विवेदी
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<poem>याद तुम्हारी आई है.
कैसे कहूँ तनहाई है.

"प्यार है तुमसे "कह न सका,
लेकिन ये सच्चाई है.

दिल मेरा है पर इसमें,
तेरी प्रीति समाई है.

तोड़ दो तुम ये ख़ामोशी,
जान पे अब बन आई है.

अब तुमने "हाँ"बोला है,
अब किस्मत रँग लाई है.

तुम क्या जानो ये भी ग़ज़ल,
तुमने ही लिखवाई है.
</poem>
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