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<poem>वह कमसिन तो है
पर सुन्दर नहीं !

संवरने की कामना
उसे ब्यूटी पार्लर ले जाती है
पर घर लौटते ही
मेरे सामने खड़ी हो जाती है
क्षण भर के लिए ही सही
वह मूर्खा
विष्व सुन्दरी हो जाती है

दर्पण हूँ तो क्या
कभी-कभी
अपनी अंतरंग सखी का मन रखने के लिये
झूठ भी बोल लेता हूँ ।</poem>
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