भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
<poem>
''' टारगेट नामक अंतरिक्षयान '''
उस सभागृह में जो बोल रहा था
उसकी भाषा अंग्रेज़ी थी
नहीं अंग्रेजी के अलावा भी
बहुत सारी भाषाएँ छुपी हुईं थीं
उसकी आवाज़, पोषाक और भावभंगिमाओं में
 
ग़ज़ब का सम्मोहन था
उसके व्याख्यान में
बोल रहा था वह अंग्रेजी में
और उसे सुन समझ रहे थे
दुनिया की दूसरी भाषाओं के लोग
भाषा तो दूर बोलियोंवाले भी
उसकी सभा में बैठे थे
जैसे प्रवचन सुन रहे हों।
 
सभा हो रही थी
शहर के सबसे महँगे होटल में
मुफ्त में बँट रही थी शराब
चखने में उतने ही किस्म के नमकीन
आज पहली बार महसूस हो रहा था
वास्तव में चना घोड़ों के लिए होता है
इतने वर्षों तक खाते रहे हम
घोड़ों की खुराक
 
 
जुटे थे
शहर गाँव के होनहार
ऊर्जा से लबालब
 
बढ़ते हुए जीडीपी और
उछलते कूदते शेयरों का नशा
झिलमिला रहा था
सबकी आखों में स्वप्न की ज़गह
 
व्याख्यान के आकड़ों से
और भी रंगीन हो रही थी
उनकी नशीली दुनिया
जब वे सभा के बाहर निकले तो
सूरज के आमने-सामने थे
सबको निर्देश था
टारगेट नामक अंतरिक्षयान में सवार होने का
सवार होते ही यान उड़ गया सूरज की तरफ
फिर वे कभी नहीं लौटे
तीसरी दुनिया के
तीसरे दर्ज़े की ज़िन्दगी में
इन्तज़ार मे बैठी उनकी बूढ़ी माँ
चाँद के काले धब्बों के बीच
कात रही है चरखा।
</poem>
155
edits