भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
' {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रदीप मिश्र |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> ''...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=प्रदीप मिश्र
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
''' दीपक-तीन '''
उसने अपनी स्लेट पर लिखा - अ
लपलपायी दीपक की लौ
उसने अपनी स्लेट पर लिखा - ज्ञ
और दीपक इतमीनान से बुझ गया
क्योंकि उसकी आग
बच्चे के दिल में पहुँच गयी थी
अब बच्चा देख सकता था
अँधेरे में भी सबकुछ साफ़-साफ़ ।
</poem>