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|रचनाकार=देवकी दर्पण ‘रसराज’
|संग्रह= मंडाण / नीरज दइया
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<poem>
फाफरा ठोक ही अब तांई
दांतां’र पांस न
ढोकतो रैयो फाफरा सूं
ढाकणा न आ...आ...फा...फा...
की रट सूं
मन का रसिया न सूं
अर बीज-बीच में
ऊ बळबळती
असाढ़ की लाय में
झक्कर न स्यापी में
समेट’र कान पोत खरड़-खरड़
खरार करतो
फेर बादळां नै कीं आस में सीजतो
हार्यो-थाक्यो आ’र भी
नगाड़ा बजा’र
देवतान सूं अरज करतो
पसीनो बहा’र
मोती निपजा वाळो छापरान सूं
आछ्यो खाबो अर पहरबो
बार थ्वार सूं
चीकणी चुपड़ी
अेक-अेक ढेकळ में देखतो
जिंदगी का सुपना
छोरी का पीळा हाथ
बण को मोसाळो
माथा पे करज घणो
सगळी जिनगाणी
बीतगी
हाय-हाय करतां
साता कद कुण नैं मिली....?
</poem>
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