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अरथ / मोहन सोनी ‘चक्र’

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|रचनाकार=मोहन सोनी ‘चक्र’
|संग्रह= मंडाण / नीरज दइया
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<poem>
म्हैं आपरो
काळजो काढ’र
धर दीन्हो
वीं रै साम्हीं
आखरां रै मिस
पण थूं है कै
अरथ बूझतो
बाज ई नीं आवै।
</poem>
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