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सांकळ-एक / हरि शंकर आचार्य

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|रचनाकार=हरि शंकर आचार्य
|संग्रह= मंडाण / नीरज दइया
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<poem>
ढाय दो वा भींत
जकी बणाय दियो है
एक दायरो
जिण सूं जकड़ीज्योड़ी है-
थारी हंसी-खुसी,
जोबन अर चंचलता।
</poem>
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