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सांकळ-दोय / हरि शंकर आचार्य

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|रचनाकार=हरि शंकर आचार्य
|संग्रह= मंडाण / नीरज दइया
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<poem>
तोड़ न्हांखो वा सांकळ
जकी बदळै थांनैं
एक जींवती लास मांय
अर भरै बसका
काळजै रो खुणो-खुणो
बळती आतमां रै बिचाळै
कोनी उठै धुंवो ई।
</poem>
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