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Kavita Kosh से
वर्तनी ठीक की है।
ज़िन्दा हूँ मगर ज़ीस्त की लज़्ज़त नहीं बाक़ी<br>
हर चांद की चंद कि हूँ होश में, होशियार नहीं हूँ <br><br>
ज़ीस्त= जीवन; लज़्ज़त= स्वाद<br>
इस ख़ाना-ए-हस्त से गुज़र जाऊंगा जाऊँगा बेलौस<br>
साया हूँ फ़क़्त, नक़्श बेदीवार नहीं हूँ<br><br>
गुल=फूल; ख़िज़ां= पतझड़; ख़ार= कांटा<br><br>
यारब मुझे महफ़ूस महफ़ूज़ रख उस बुत के सितम से<br>
मैं उस की इनायत का तलबगार नहीं हूँ<br><br>
अफ़सुर्दगी-ओ-जौफ़ की कुछ हद नहीं “अकबर”<br>
अफ़सुर्दगी-ओ-जौफ़=निराशा और क्षीणता;काफ़िरक़ाफ़िर=नास्तिक; दींदार=आस्तिक,धर्म का पालन करने वाला
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