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{{KKRachna
|रचनाकार=प्रेमघन
|संग्रह=जीर्ण जनपद / बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
}}
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<poem>
जाड़न मैं लखि सब कोउन कहँ तपते तापत।
कोऊ मड़ई मैं बालक गन कौड़ा बिरचत॥
विविध बतकही मैं तपता अधिकाधिक बारत।
जाकी बढ़िके लपट छानि अरु छप्पर जारत॥
कोलाहल अति मचत भजत तब सब बालक गन।
लोग बुझावत आगि होय उद्विग्न खिन्न मन॥
खोजत अरु जाँचत को है अपराधी बालक।
पै कछु पता न चलत ठीक है कहा, कहाँ तक॥
न्याय मोलवी साहब ढिग जब बैठत याको।
अपराधी ता कहँ सब कहत, दोष नहिं जाको॥
न्याय न जब करि सकत मोलवी गहि शिशुगन सब।
सटकावत सुटकुनी खूब सबकी पीठन तब॥
</poem>
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|संग्रह=जीर्ण जनपद / बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
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जाड़न मैं लखि सब कोउन कहँ तपते तापत।
कोऊ मड़ई मैं बालक गन कौड़ा बिरचत॥
विविध बतकही मैं तपता अधिकाधिक बारत।
जाकी बढ़िके लपट छानि अरु छप्पर जारत॥
कोलाहल अति मचत भजत तब सब बालक गन।
लोग बुझावत आगि होय उद्विग्न खिन्न मन॥
खोजत अरु जाँचत को है अपराधी बालक।
पै कछु पता न चलत ठीक है कहा, कहाँ तक॥
न्याय मोलवी साहब ढिग जब बैठत याको।
अपराधी ता कहँ सब कहत, दोष नहिं जाको॥
न्याय न जब करि सकत मोलवी गहि शिशुगन सब।
सटकावत सुटकुनी खूब सबकी पीठन तब॥
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