भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वसन्त विहार / प्रेमघन

1,436 bytes added, 07:01, 30 जनवरी 2016
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेमघन |संग्रह=जीर्ण जनपद / बदरी...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=प्रेमघन
|संग्रह=जीर्ण जनपद / बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
ऋतु बसन्त मैं पत्र पुष्प के विविध खिलौने।
आभूषण त्यों रचत छरी अरु छत्र बिछौने॥
भाँति भाँति के फल चुनि सब मिलि खात प्रहर्षित।
नव कुसुमित पल्लवित बनन बागन बिहरत नित॥
कोऊ काले भौंरन ही हेरैं दौरावैं।
पकरैं भाँति भाँति तितली कोउ ल्याय सजावैं॥
ग्रीषम मैं जब चलैं बवण्डर भारी भारी।
दौरैं हम सब ताके संग बजावत तारी॥
पकरत फनगे मुकुलित मंदारन सों आनत।
ताकी कटि मैं कसि कसि डोरी बिधि सों बाँधत॥
ताहि उड़ावत कोउ मदार फल कोऊ ल्यावैं।
गेंद खेल खेलैं तिहिसों सब मिलि हरखावैं॥
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits