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प्रार्थना - 8 / प्रेमघन

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|रचनाकार=बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
|संग्रह=प्रेम पीयूष / बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
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<poem>
नव नील नीरद निकाई तन जाकी जापै,
::कोटि काम अभिराम निदरत वारे हैं।
प्रेमघन बरसत रस नागरीन मन,
::सनकादि शंकर हू जाको ध्यान धारे हैं॥
जाके अंस तेज दमकत दुति सूर ससि,
::घूमत गगन मैं असंख्य ग्रह तारे हैं।
देवकी के बारे जसुमति प्रान प्यारे,
::सिर मोर पुच्छ वारे वे हमारे रखवारे हैं॥
</poem>
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