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स्फुट - 2 / प्रेमघन

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{{KKRachna
|रचनाकार=बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
|संग्रह=प्रेम पीयूष / बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
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<poem>
साँवरि सूरति मूरति मैन, मयंक लखे मुख जासु लजो है।
मोर पखौवन को सिर मौर, गरे बन माल धरे मन मोहै॥
सीकर सोभा सुधा बरसाय कै, आय हिये घनप्रेम अरो है।
बावरी मोहिं बनाय गयो, मुसकाय के हाय न जानिये को है॥
</poem>
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