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Kavita Kosh से
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दीवाना कहके कोई मुझे छेड़ता नहीं ।
कल ज़िन्दगी मिली तो बहुत शर्मसार थी
जग में किसी ने उसपे भरोसा किया नहीं ।
मैंने वफ़ा जो की तो निभाए चला गया
कैसे कहूँ कि इश्क़ में मेरी खता नहीं ।
हँसता था बोलता था कभी चीख़ता भी था
बस मैं तेरे बग़ैर कभी जी सका नहीं ।
चाहें तो आप भी इसे दीवानगी कहेंमंज़िल पुकारती रही पर मैं क्या गिला करूँ मैं अकेला दुखी नहींदर से तेरे किसीको दिलासा मिला रूका नहीं ।
हैरां था चारागर भी पशेमां था सोज़ भी
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