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दीवाना कहके कोई मुझे छेड़ता नहीं ।
बस्ती मैं मुद्दतों से यारो को अपने ज़ौक़े-तमाशा हुआ रहा नहीं ।।
कल ज़िन्दगी मिली तो बहुत शर्मसार थी
जग में किसी ने उसपे भरोसा किया नहीं ।
 
मैंने वफ़ा जो की तो निभाए चला गया
कैसे कहूँ कि इश्क़ में मेरी खता नहीं ।
हँसता था बोलता था कभी चीख़ता भी था
बस मैं तेरे बग़ैर कभी जी सका नहीं ।
चाहें तो आप भी इसे दीवानगी कहेंमंज़िल पुकारती रही पर मैं क्या गिला करूँ मैं अकेला दुखी नहींदर से तेरे किसीको दिलासा मिला रूका नहीं ।
मैंने वफ़ा जो की तो निभाए चला गयादीखा नहीं ज़रूर था दामन पे मेरे दाग़कैसे कहूँ कि प्यार में मेरी खता आख़िर मैं आदमी था कोई देवता नहीं ।
हैरां था चारागर भी पशेमां था सोज़ भी
हर तीर मेरे दिल में हरेक तीर था तीरे-वफ़ा नहीं ।।
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