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|रचनाकार=गौतम राजरिशी
|संग्रह=पाल ले इक रोग नादाँ / गौतम राजरिशी
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<poem>
झूठ बोलेगा तो ये आलम तेरा हो जायेगा
गर कहेगा सच यहाँ तो हादसा हो जायेगा

भेद की ये बात है, यूँ उठ गया पर्दा अगर
तो सरे-बाज़ार कोई माजरा हो जायेगा

इक ज़रा जो राय दें हम तो बनें गुस्ताख़-दिल
वो अगर दें धमकियाँ भी, मशवरा हो जायेगा

है नियम बाज़ार का ये जो न बदलेगा कभी
वो है सोना जो कसौटी पर खरा हो जायेगा

भीड़ में यूं भीड़ बनकर गर चलेगा उम्र भर
बढ़ न पायेगा कभी तू, गुमशुदा हो जायेगा

सोचना क्या ये तो तेरे जेब की सरकार है
जो भी चाहे, जो भी तू ने कह दिया,हो जायेगा

तेरी आँखों में छुपा है दर्द का सैलाब जो
एक दिन ये इस जहाँ का तज़किरा हो जायेगा





(त्रैमासिक सरस्वती सुमन, जनवरी-मार्च 2011)
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