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{{KKRachna
|रचनाकार=गौतम राजरिशी
|संग्रह= पाल ले इक रोग नादाँ / गौतम राजरिशी
}}
{{KKCatGhazal}}
मिट गया इक नौजवां कल फिर वतन के वास्ते
चीख तक उट्ठी नहीं इक भी किसी अखबार अख़बार से
कितने दिन बीते कि हूँ मुस्तैद सरहद पर इधर
रात भर आवाज देता है कोई उस पार से