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पावस - 6 / प्रेमघन

No change in size, 06:42, 22 फ़रवरी 2016
::बक औलि अकास उड़ान लगी॥
पिक चातक दादुर मोरन की,
::कल बोल महान सुनान सुहान लगी।
घन प्रेम पसारत सी मन मैं,
::घनघोर घटा घहरान लगी॥
</poem>
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