भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पावस - 12 / प्रेमघन

975 bytes added, 07:25, 22 फ़रवरी 2016
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
|संग्रह=प्रेम पीयूष / बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
}}
{{KKCatBrajBhashaRachna}}
<poem>
जेवत जराऊ जोति जीगन जनात किल,
::किंकिनी लैं कूकनि मयूरन की डार डार।
सारी स्यामताई पै किनारी चंचला की लखि,
::प्रेमी चातकन गन दीनो मन वार वार॥
पुरवाई पवन प्रभाय छहराय छवि,
::देखो तो दिखात औ दुरत चंद बार बार।
बदन विलोकन को रजनी रमनि,
::बस प्रेमघन घूँघटैं रही हैं जनु टार टार॥
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits