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{{KKRachna
|रचनाकार=बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
|संग्रह=प्रेम पीयूष / बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
}}
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<poem>
उदोत है पूरब सों वह पूरब, सो पैं न जान्यो परै छल छन्द।
अपूरब कैसो अपूरब हूँ तैं, लखात जो पूरो प्रकास अमन्द॥
दोऊ बरसैं घन प्रेम सुधा, चित चोर चकोरहि देत अनन्द।
निसा सुभ सारद पूनव माँहि, लखे जुग सारद पूनव चन्द॥
</poem>
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उदोत है पूरब सों वह पूरब, सो पैं न जान्यो परै छल छन्द।
अपूरब कैसो अपूरब हूँ तैं, लखात जो पूरो प्रकास अमन्द॥
दोऊ बरसैं घन प्रेम सुधा, चित चोर चकोरहि देत अनन्द।
निसा सुभ सारद पूनव माँहि, लखे जुग सारद पूनव चन्द॥
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