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जय किसकी / चंद्र रेखा ढडवाल

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नारे थे इतने ऊँचे
और सघन इतने
कि वह काँप गया
शब्द स्पष्ट हुए
- भारत माता की जय -
वह सुस्थिर हुआ अपने लोग हैं
जिसकी जय के लिए कटिबद्ध ये
उसी का आत्मज मैं . . .
पर पलक झपकते डण्डे
हाथों में थमें झण्डों के बरस गए
चिथड़ा चिथड़ा हुआ रंग सफेद हरा
केसरिया गडमड हुआ एक ही रंग में . . .
निपट सूनी स्याह खोह में उतरते
उसने समझना चाहा
यह किसकी मां की जय पुकारते हैं।

</poem>