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|रचनाकार=भवानीप्रसाद मिश्र
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कहते हैं
इस साल हर साल से पानी बहुत ज्यादा गिरा
पिछ्ले पचास वर्षों में किसी को
इतनी ज्यादा बारिश की याद नहीं है।
कहते हैं <br>इस साल हर साल से पानी बहुत ज्यादा गिरा<br>पिछ्ले पचास वर्षों में किसी को <br>इतनी ज्यादा बारिश की याद नहीं है ।<br><br>कहते हैं हमारे घर के सामने की नालियां<br>इससे पहले इतनी कभी नहीं बहीं<br>न तुम्हारे गांव की बावली का स्तर<br>कभी इतना ऊंचा उठा<br>न खाइयां कभी ऐसी भरीं , न खन्दक<br>नरबदा नर्मदा कभी इतनी बढ़ी, न गन्डक ।<br><br>गन्डक। पंचवर्षीय योजनाओं के बांध पहले नहीं थे<br>मगर वर्षा में तब लोग एक गांव से दूर दूर के गांवों तक<br>सिर पर सामान रख कर यों टहलते नहीं थे<br>और फिर लोग कहते हैं <br>जिंदगी पहले के दिनों की बड़ी प्यारी थी<br>सपने हो गये वे दिन जो रंगीनियों में आते थे<br>रंगीनियों में जाते थे<br>जब लोग महफिलों में बैठे बैठे <br>रात भर पक्के गाने गाते थे<br>कम्बख़्त हैं अब के लोग, और अब के दिन वाले <br>क्योंकि अब पहले से ज्यादा पानी गिरता है<br>और कम गाये जाते हैं पक्के गाने ।<br><br>गाने। और मैं सोचता हूँ, ये सब कहने वाले<br>हैं शहरों के रहने वाले <br>इन्हें न पचास साल पहले खबर थी गांव की<br>न आज है<br>ये शहरों का रहने वाला ही<br>जैसे भारतीय समाज है ।है।</poem>
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