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Kavita Kosh से
सुधियों की वीणा है
पाया रस निर्झर!
2
तुम सूरज!
मेरे मन यादों का
गुलमोहर झरा।
3
शर्मीली भोर
लो डाल गया रंग
ये कौन? हुई दंग।
4
खेल तो लूँ मैं
तुमपे कान्हा, भीगें
मन, प्राण हमारे।
5
नया सूरज
ख़ुशियों की रागनी
ये मन-वीणा गाए।
6
उषा मोहिनी
पीछे प्रीत पाहुन
दिवस मुग्ध, आया।
7
भोर है द्वार
पवन भी मगन
प्रेम वर्षे अपार।
8
झीनी चादर
क्यों हुआ हाल ऐसा
बड़ा खाता था ताव!
9
ठिठुरी धूप
भोर ले के आ गई
क्यों ये ठंडा-सा सूप?
10
तुहिन पुष्प