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{{KKRachna
|रचनाकार=भवानीप्रसाद मिश्र
|संग्रह=त्रिकाल संध्या / भवानीप्रसाद मिश्र
}}
[[Category:बाल-कविताएँ]]{{KKCatBaalKavita}}<poem>अक्कड़ मक्कड़, धूल में धक्कड़,दोनों मूरख, दोनों अक्खड़,हाट से लौटे, ठाठ से लौटे,एक साथ एक बाट से लौटे।
अक्कड मक्कड ,<br>धूल बात-बात में धक्कडबात ठन गयी,<br>दोनों मूरख,<br>दोनों अक्खड,<br>हाट से लौटे,<br>बांह उठीं और मूछें तन गयीं।ठाट से लौटेइसने उसकी गर्दन भींची,<br>एक साथ एक बाट से लौटे .<br><br>उसने इसकी दाढी खींची।
बात बात में बात ठन गयी,<br>बांह उठीं और मूछें तन गयीं.<br>इसने उसकी गर्दन भींची,<br>उसने इसकी दाढी खींची.<br>अब वह जीता,अब यह जीता;<br>दोनों का बढ चला फ़जीता;<br>लोग तमाशाई जो ठहरे -<br>सबके खिले हुए थे चेहरे !<br><br>
मगर एक कोई था फक्कडफक्कड़,<br>मन का राजा कर्रा - कक्कडकक्कड़;<br>बढा भीड भीड़ को चीर-चार कर<br>बोला ‘ठहरो’ गला फाड कर.<br><br>फाड़ कर।
अक्कड मक्कड अक्कड़ मक्कड़,<br>धूल में धक्कडधक्कड़,<br>दोनों मूरख,<br>दोनों अक्खडअक्खड़,<br>गर्जन गूंजी,रुकना पडापड़ा,<br>सही बात पर झुकना पडा पड़ा!<br><br>
उसने कहा सधी वाणी में,<br>डूबो चुल्लू भर पानी में;<br>ताकत लडने लड़ने में मत खोऒ<br>खोओचलो भाई चारे को बोऒबोओ!<br><br>
खाली सब मैदान पडा पड़ा है,<br>आफ़त का शैतान खडा खड़ा है,<br>ताकत ऐसे ही मत खोऒखोओ,<br>चलो भाई चारे को बोऒ.बोओ। सुनी मूर्खों ने जब यह वाणीदोनों जैसे पानी-पानीलड़ना छोड़ा अलग हट गएलोग शर्म से गले छट गए। सबकों नाहक लड़ना अखराताकत भूल गई तब नखरागले मिले तब अक्कड़-बक्कड़खत्म हो गया तब धूल में धक्कड़ अक्कड़ मक्कड़, धूल में धक्कड़दोनों मूरख, दोनों अक्खड़।</poem>
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