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उर्दू है मिरी जान अभी सीख रहा हूँतहज़ीब की पहचान अभी सीख रहा हूँ हसरत है कि गेसू-ए-ग़ज़ल मैं भी संवारूँ ये बह्र, ये अर्कान, अरकान अभी सीख रहा हूँ होने की फ़रिश्ता नहीं ख़्वाहिश मुझे हरगिज़ बनना ही मैं इंसान, अभी सीख रहा हूँ ख़ादिम हूँ ज़माने से इसी सिनफ़े ग़ज़ल का पढ़-पढ़ के मैं दीवान, अभी सीख रहा हूँ महफ़ूज़ न रख पाऊँगा दौलत के ख़ज़ीने कहता है ये दरबान, अभी सीख रहा हूँ आग़ाज़े महब्बत मुहब्बत में ये आँखें ग़मज़े ये अदाएं
ले लें न कहीं जान अभी सीख रहा हूँ
क़ुर्बत तेरी तिरी जी का मेरे मिरे जंजाल न बन जाएहर शय से हूँ अंजान अभी सीख रहा हूँ अदना सा सिपाही महफ़ूज़ न रख पाऊँगा दौलत के ख़ज़ाने कहता है ये कहे बह्र-ए-अदब का बन जाऊँगा सुलतान, दरबान अभी सीख रहा हूँ मैं तो हूँ 'रक़ीब' आज भी इक तिफ्ल तिफ़्ल अदब में पढ़-पढ़ के मैं दीवान, अभी सीख रहा हूँ
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